Tuesday, July 14, 2015

हिंदी का वैश्विक स्वरुप

आज हम हिंदी को जिस रूप में देख-सुन पा रहे हैं वो हमें गौरवान्वित करती है| दुनिया भर के लोग हिंदी सीख–सिखा रहे हैं| हिंदी के इस सीखने-सिखाने के कड़ी में आज हम डॉ. जी.पी. शर्मा से जानेंगे कि चीन में हिंदी पढाते हुए वो कैसा अनुभव करते हैं और वहाँ हिंदी की क्या स्थिति है ? आपको बता दूँ, डॉ. शर्मा चीन के गुआंगडांग अंतर्राष्ट्रीय भाषा विश्वविद्यालय में हिंदी के प्रोफ़ेसर हैं|
हिंदी इस समय राष्ट्रीय भाषा ही नहीं अंतर्राष्ट्रीय भाषा है| हिंदी ने आज के समय में अपनी स्थिति को काफी मजबूत किया है| हिंदी पहले की तुलना में साहित्यिक सांस्कृतिक सामाजिक  दृष्टी से समृद्ध हुई है| भूमंडलीकरण के इस दौड़ में दुनिया भर का ध्यान अब मंडारिण, हिंदी और स्पैनिस दुनिया भर का ध्यान अपनी ओर खींचा हैं| इनका कारण साहित्य पर्यटन और व्यबसाय है|
हिंदी इस समय दुनिया की सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में दूसरे स्थान पर है| पहले स्थान पर चीनी भाषा मंडारिण और तीसरे स्थान पर स्पैनिस| अंग्रेजी का स्थान चौथा है लेकिन दुर्भाग्य है कि अंग्रेजी को हिंदी से ऊपर रखा जाता है और हिंदी को उसके बाद|
हिंदी बोलने और समझने वालों की संख्या में बहुत बड़ा अंतर है| हिंदी समझने वालों में से नेपाल, भूटान , बंगलादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान देश भी शामिल है| इसमें नेपाल, पाकिस्तान और बंगलादेश हिंदी बोलते भी है| हाँ पाकिस्तान और बंगलादेश की लिपि फारसी है नहीं तो हिंदी का स्वरुप और बड़ा सिद्ध किया जा सकता था|
फिजी, मपाना, त्रिनिडाड, टुबैगो और मारिशस में भी हिंदी का बोलबाला है| यहाँ भारतीय मूल के लोग हिंदी बोलने में गौरव महसूस करते हैं और उनकी तादाद अच्छी खासी है| आज कि स्थिति ये है कि दुनिया हिंदी को व्यापारिक उद्देश्य से भी सीख रही हैं|

चन्द्रशेखर : डॉ.साहब आप हमें ये बताईये कि चीन में हिंदी की क्या स्थिति है ?
डॉ. शर्मा : चीन में हिंदी की स्थिति बहुत मजबूत है| 10 से अधिक विश्वविद्यालयों में ये मुख्यभाषा के रूप में पढ़ाई जा रही है |विजिंग विश्वविद्यालय में अनेक स्तरीय शोध यह दर्शाते हैं कि हिंदी चीन में न केवल व्यापार में है बल्कि साहित्य एवं संस्कृति में भी| हिंदी पर सैकड़ों  शोधपत्र चीन के विविध विश्वविद्यालयों में प्रस्तुत किये गए हैं | जिससे यहाँ अप्रतित होता है कि संस्कृत के बाद चीन ने सबसे अधिक ध्यान हिंदी पर दिया है |विदेशी भाषाओँ में अंग्रेजी तो वहाँ केवल बोलने के स्तर तक लोग सिखाना-सीखना पसंद करते हैं लेकिन हिंदी को गंभीर अध्ययन के लिए पढते-पढाते हैं| चीन में हिंदी का भविष्य उज्ज्वल हैं |
चन्द्रशेखर :  आप सही कह रहे हैं,हिंदी दुनियाभर में फ़ैल रही है लेकिन अपने देश में हिंदी की स्थिति अच्छी नहीं है|कमाल पासा ने तुर्की को अनिवार्य रूप से राजभाषा बनाया था तब जाके लोगों ने उसे सिखा था लेकिन हिंदी के लिए हमारे देश में कोई दृढ संकल्प नहीं है| हम अंग्रेजी बोलकर गौरव महसूस करते हैं, हिंदी को बोलकर नहीं |
डॉ.शर्मा:  हाँ चन्द्रशेखर जी हकीकत तो यह है कि बीजिंग विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर च्यानचिंग ने एक मुलाकात में मुझसे कहा कि “ शर्मा जी  हिंदी में विद्वानों की कमी नहीं है पर प्रेमियों की है| जैसे हम मंडारिन बोल कर गर्व का अनुभव करते हैं वैसे आपके यहाँ हिंदी बोलने में गर्व का अनुभव मैंने नहीं देखा|  मैं भारत जाता हूँ तो देखता हूँ कि हिंदी के प्रोफ़ेसर मुझसे तो मुझसे अपने लोगों तक से हिंदी में बात करते हैं| इस मामले में डॉ.नामवर सिंह और काशीनाथ सिंह अपवाद है जो हिंदी में ही बात करना पसंद करते हैं|”
चन्द्रशेखर : हाँ विजिंग के प्रोफ़ेसर की बात सही है लेकिन मैं यह भी देखता हूँ कि मोदी जी हिंदी के विकास पर ध्यान दे रहे हैं|
डॉ.शर्मा:  चन्द्रशेखर जी मोदी जी के अकेले ध्यान देने से अच्छा है कि हम सभी बराबर ध्यान दे |तभी हिंदी का सही विकाश होगा| मोदी जी संघाई गए थे| इसमे मैं भी गया था |चीन में रह रहे भारतीय को उन्हें संबोधित करना था, काफी संख्या में वहाँ भारतीय पहुंचे थे| लेकिन उनके मंच संचालक न जाने क्यों अंग्रेजी में ही सबकुछ कह-सुन  लेना चाहते थे, जबकि मोदी जी ने अपना भाषण हिंदी में दिया| जो चीनी हिंदी बोलते हैं वे अपने बातों में अंग्रेजी शब्दों को स्थान नहीं देते| जबकि हम भारतीय या तो अंग्रेजी में बात करना चाहते हैं या अंग्रेजी युक्त हिंदी|  जो हिंदी के लिए कतई शुभ संकेत नहीं है |
चन्द्रशेखर :  जिस विश्वविद्यालय में आप पढाते हैं उसमे विद्यार्थियों की हिंदी किस स्तर की है ?
डॉ. शर्मा : मैं जिस विश्वविद्यालय में पढाता हूँ उसके विद्यार्थी हिंदीमय हैं| उन्होंने अपने नाम तक हिंदी में रखे हैं| वे जब हिंदी बोलते हैं तो हिंदी बोलने के क्रम में एक बार भी विश्वविद्यालय की जगह यूनिवर्सिटी शब्द का प्रयोग नहीं करते सुना| वे प्रथम वर्ष में वर्णमाला सीखते हैं एवं तीसरे वर्ष के प्रथम सत्र में ही हिंदी साहित्य का इतिहास पढते हैं| इससे आप उनके हिंदी के प्रति रूचि एवं इसके ज्ञान का स्तर का खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं|
चन्द्रशेखर :  आप नयी पीढ़ी को क्या सन्देश देना चाहते है ?
डॉ. शर्मा :  मैं अपने नयी पीढ़ी से ये अनुरोध करता हूँ कि वे अपनी मातृभूमि और राष्ट्रभाषा में बोलकर गौरव महसूस करे और उसे प्रयोग में लाएँ| मैं मानता हूँ कि अंग्रेजी जरुरत की भाषा हो सकती है परन्तु गौरव की भाषा नहीं| लोग अनावश्यकरूप से अंग्रेजी बोलकर जो गौरव महसूस करते हैं, वह वास्तव में गौरव का विषय नहीं है| सचमुच जब हमलोग हिंदी बोलकर गौरव का अनुभव करने लगेंगे, तभी हिंदी के विकाश के नए सोपान गढे जा सकेंगे| दुनिया के जितने भी देश आज विकास के शिखर पर हैं, उन्होंने अपनी शिक्षा और विकाश के सरे कार्यक्रम अपनी भाषा में ही किये हैं| चीन,जापान,रूस श्रेष्ठ उदहारण हैं| हमें भी अगर विकास के सोपान तय करने हैं तो अपनी भाषा को उपयोग में ही लाना होगा|