'गर है प्यार तुमको मुझसे,
रुको न दो पल भी,
नदियों सा बह कल-कल-कल |
पहाड़ों से गिरी सरिता,
सदैब बहने का लिए संकल्प,
तू भी पानी सा, जीवन पथ में
संग मेरे बढ़ने को हो प्रतिबद्ध ||
भवरों औ तितलियों ने,
फूलों के मधुमय होठों पर,
कितने चुम्बन टाँके होंगे,
क्या माली इस पर रोक लगा पाया है ?
कितने फूल मुर्झाये, कितनी कलियाँ मुस्कायी,
कितने भवरें रुथ गए, कितनी तितलियाँ लहराई,
हवा के झोंको से. जब मौसम बासंती हो जाती है
तो इन पर कितने दिन माली ने शोक मनाया है ?
कच्चे धागों जैसे रिश्ते,
जुगनू सा अनुबंध है जिसका,
उनसे तू उम्मीद न कर,
रुढीवादी समाज ने अक्सर,
स्त्रियों को ही धुत्कार है|
स्त्रियों को ही धुत्कार है|
कितने मौसम बीत गए,
यादों के मंजर में,
काँटों के भी मन महुआए,
पुरवईयाँ अपने घर लौट चली |
अनुबंधों की माटी में,
अब तक प्यार नहीं पनपा,
नफरतों के रेगिस्ताँ में,
गर्म तबे पर पानी सा,
छन्न से लुप्त हुआ मोहब्बत |
आज रात इस चाँदनी में,
आओ लिखें हम भी,
अपनी दास्ताँ-ए-मोहब्बत,
जीवन के हर पन्नों पर होगा,
गजल रुबाई गीत गुलाब |
सावन की आँखों में उपजे आँसू भी होंगे,
फागुन की सुरमयी धुप भी मुस्कायेगी |
झूठे रिश्ते के इस बंधन में,
मैं कहीं उलझ न जाऊं,
इससे पहले,
थाम ले तू हाथ मेरा,
सूरज के उगने तक,
इस अंधकार में,
मशाल बनकर जल ,
आ मेरे संग तू चल,
साथ-साथ संग मेरे तू चल |
- चन्द्रशेखर प्रसाद