Monday, April 28, 2014

आखिरी खत (दिलों के दरमियाँ अब भी कुछ आस बाकि है..)

मोहब्बत का शौक तो तुम रखती नहीं मगर बर्बाद तो तुम कमाल का करती हो
                                                                                                              - चन्द्रशेखर प्रसाद 
मैं और मेरी तन्हाई अक्सर बातें किया करतें है |वो आये दिन हमेशा मुझ पर हँसती रहती है| अब तुम ही बताओक्या हुआ अगर मैं तुमसे बेपनाह मोहब्बत करता हूँ, अपने आप से भी ज्यादाजरुरी थोड़े ही है कि तुम भी मुझसे उतना ही प्यार करो| ये जो मोहब्बत है न्युटनस लौ की तरह तो है नहीं कि इक्वल एंड अपोजित रिएक्सन हो| मैं जब भी चाँद को देखता हूँ ऐसा लगता है तुम्हें ही देखत हूँचाँद अभी बिलकुल तुम्हारी तरह है| वो ही खूबसूरती, वो ही नूर, वो ही गुरुर और वैसे ही तुम्हारी तरह हमसे दूर| तो क्या हुआ, क्या चकोर ने कभी चाँद को देखना छोड़ दिया है ? नहीं ना.. |वो तो चाँद के लिए अपनी गर्दन भी मरोड़ लेता है| चाँद इतना संगदिल है कि उसे कभी उसके अनकहे प्यार का एहसास भी हुआ, तो इसमें कौन सी बड़ी बात हो गई |इस ज़माने में अकसर लोग कहा करते हैंकिसका प्यार यहाँ पूरा होता है,प्यार का पहला अक्षर ही अधूरा होता हैइसका क्या मतलब ? क्या कहती हो तुम- लोग प्यार करे, किसी पे एतवार करे|
चलो थोड़ी देर के लिए ये भी मान लेता हूँ पर इसके लिए तुम क्या कहोगी? “प्यार किया नहीं जाता ,प्यार हो जाता है|” अब तो हो गया, कर दी मैंने गलतीऐसी गलती जो सुधारी नहीं जा सकती बल्कि सच बोलूं तो इसे बार-बार लगातार दुहराने को जी करता है |कई बार मैंने मन के बहकावे में आकर अपने दिल से बगावत करने कि कोशिस की| यही कि तुमसे नफ़रत करूँ, तुम्हें भुला दूँ मगर वो भी कर सका |शाम होते ही सज जाता है तेरी यादों का बाजार,बस मेरी हर रात इसी रौनक में गुजर जाती हैतुमने मुझे भुला दिया इस बात का गम नहीं है मुझको, मगर गम इस बात का है कि मुझे तुक्राने के बाद भी तुम्हें कुछ हासिल हुआ| इतना भी नहीं कीमती था मेरा चैन और सकून, जो तुम इसे किसी अनमोल खजाने की तरह लूटकर ले गयी|
तुम क्या जानों प्यार क्या होता है? कभी कर के देखो तुम तड़प जाओ तो कहना |ये जो जुदाई है बड़ी मुश्किल है इसे सहना, तुम टूट के बिखर जाओ तो कहनातुम क्या जानो बफा का मतलब, ये दिखाती नहीं पर तुम अगर ढून्ढ पाओ तो कहना |आँसू को छिपाना है बड़ा मुश्किल, मेरी आँखों में अपनी मोहब्बत के मंजर तो देखो, तेरी आँखों से अगर मोती छलक जाये तो कहनामेरी आँखों को पढ़ने का तुम हूँनर सीख लो,प्यार कि हर बात बताने कि नहीं होती और सीखना ही है तो आँखों को पढ़ना सीख लो, वरना लब्जों के तो हजारों मतलब निकलते हैं |कम से कम मेरे दर्द को तुम तो समझो, ये हँसता हुआ चेहरा तो ज़माने के लिए हैअब तो मुझे अकसर ख्वाब में हीतेरे आने कि उम्मीद के साथ सोना अच्छा लगता हैखैर .. चाहे जो भी हो इतना तो यकीं है मुझे अपने वजूद पर, कोई मुझसे दूर जा सकता है भुला नहीं सकता|
क्या हुआ अगर मैं तुम्हारी जुल्फों की घनी छावं में सर रखकर सिर्फ तुम्हें ही देखना चाहता हूँ, तुम्हारा ही दीदार करना चाहता हूँक्या हुआ मुझे तेरे सिवा कुछ अच्छा नहीं लगतातुम नाराज हो ये बर्दास्त है मुझे, यकीं है मना लूँगा तुम्हे एक दिन, तुम मुस्कुरा के देखो किसी को अच्छा नहीं लगता|
अजी ! इतने मसरूफ कहाँ हो गए तुम, आजकल फेसबुक पर दिल तोडने भी नहीं आती |इसलिए ये खत लिख रहा हूँ |तेरी बेरुखी पर एतराज नहीं हमें, किस हाल में हूँ बस इतना पूछ लिया करोकभी कभी इस द्वन्द में उलझ जाता हूँ कि क्या तुम मेरे सब्र का इम्तिहान लेती रहती हो या हकीकत में तुम्हे मेरी याद नहीं आती |अब मुझे जिंदगी से भी कोई शिकायत नहीं, दुःख तो बस इतना है कि इस मशरूफ जिंदगी में तेरी याद के सिवा मेरा हाल पूछने कोई आता भी नहींलेकिन इस बात का यकीं है मुझे कि जब भी कभी तुम सागर किनारे जाओगी तो रेत भी तुमसे पूछेगी कहाँ चला गया शख्स जो तन्हाई में आकर सिर्फ तुम्हारा ही नाम लिखा करता था| एक बात तो मानना पड़ेगा मोहब्बत का शौक तो तुम रखती नहीं मगर बर्बाद तो तुम कमाल का करती होफिर भी उम्मीद- ए- इंतजार में ....

सिर्फ तुम्हारा