हिन्दी हमारी
राजभाषा है एवं इसका ज्ञान हम सभी को होना चाहिए डॉ. के. डी. यादव
चन्द्रशेखर प्रसाद : ( प्रश्न पूछते हुए ) महोदय
डॉ. के.
डी. यादव, सहायक प्रोफ़ेसर, सरदार वल्लभभाई राष्ट्रीय प्रौघोगिकी संस्थान सूरत,
का जन्म झाँसी उत्तरप्रदेश में 29
नवम्बर 1974 को हुआ था|
प्राथमिक,मैट्रिक, इंटरमीडियट की शिक्षा आपने यू.पी. बोर्ड से प्राप्त किया| फिर
आपने नागपुर विश्वविद्यालय से सिविल इंजीनियरिंग BE (CIVIL) एवं विक्रम
विश्वविद्यालय से मास्टर ऑफ इंजीनियरिंग ME (ENVIRONMENT) की पढ़ाई पूरी कर अध्ययन का सिलसिला आगे बढ़ाते हुए आई.आई.टी.कानपुर से PHD (ENVIRONMENT) डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त किया| आप एस.वी.एन.आई.टी.
सूरत में का. हिंदी अधिकारी एवं जन-संपर्क अधिकारी का कार्यभार सफलतापूर्वक
निर्वहन कर रहे हैं| राजभाषा प्रचार –प्रसार हेतु आपके द्वारा किये जाने वाले
प्रयास अत्यंत सराहनीय है|आपके इस सफल प्रयासों के परिणाम स्वरुप ही विवेकानंद शैक्षणिक सांस्कृतिक एवं क्रीडा
संस्थान देवघर द्वारा एस.वी.एन.आई.टी. सूरत को 50वीं वर्षगांठ पर
तकनिकी संस्थान होने के बाबजूद भी राजभाषा के प्रचार-प्रसार व सराहनीय योगदान
देने हेतु “गोल्डेन पिकोक ऑनोर अवार्ड” की
मानक उपाधि से अलंकृत व विभूषित किया गया|जनसंपर्क अधिकारी होने के साथ–साथ आपका
उत्तम व्यक्तित्व आपकी लोकप्रियता को दिन-प्रतिदिन एक नयी ऊंचाई दे रही है| चन्द्रशेखर
प्रसाद का डॉ.के.डी.यादव से एक मुलाकात
के बीच हुई बातचीत के कुछ अंश |
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ईमेल :
kdjhansi@yahoo.com
kdjhansi@gmail.com
संपर्क :
+91-94 28 398 266
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चन्द्रशेखर प्रसाद : ( प्रश्न पूछते हुए ) महोदय
1.
आप हिंदी अधिकारी हैं आपको तमाम सरकारी काम–काज
करने पड़ते हैं | हिंदी को भारत संघ की राष्ट्रभाषा बनाने में
कौन-कौन सी कठिनाईयां सामने आती है ?
उत्तर : हिंदी को संघ की राजभाषा बनाने में कोई कठिनाई नहीं है क्योंकि भारत के संविधान के
अनुच्छेद343(1) के अनुसार हिंदी तो पहले से ही संघ की राजभाषा है । हमें संघ की राष्ट्रभाषा बनाने हेतु केवलअपनी मानसिकता बदलने की आवश्यकता है क्योंकि अभी भी हम अपनी भाषा के मामले में स्वतंत्र नहीं हैं। राजभाषा अधिनियम 1963 एवं राजभाषा नियम, 1976 में हिंदी में काम करने के बारे में पहले से ही स्पष्ट निर्देश हैं कि हमें सरकारी कामकाज में हिंदी का प्रयोग करना है लेकिन राजभाषा नियम, 1976 पर पूरी तरह से अमल नहीं कर रहे हैं। धारा 3(3) के अंतर्गत 14 दस्तावेजों को किसी भी हालत में द्विभाषी रूप में जारी करना अनिवार्य है लेकिन इस धारा का शतप्रतिशत पालन नहींहो रहा है । यदि हम इन नियमों का अच्छी तरह से पालन करें तो कोई कठिनाई नहीं है |
2. राजभाषा हिंदी की वर्तमान स्थिति से क्या आप संतुष्ट हैं ?
उत्तर : हिंदी को संघ की राजभाषा बनाने में कोई कठिनाई नहीं है क्योंकि भारत के संविधान के
अनुच्छेद343(1) के अनुसार हिंदी तो पहले से ही संघ की राजभाषा है । हमें संघ की राष्ट्रभाषा बनाने हेतु केवलअपनी मानसिकता बदलने की आवश्यकता है क्योंकि अभी भी हम अपनी भाषा के मामले में स्वतंत्र नहीं हैं। राजभाषा अधिनियम 1963 एवं राजभाषा नियम, 1976 में हिंदी में काम करने के बारे में पहले से ही स्पष्ट निर्देश हैं कि हमें सरकारी कामकाज में हिंदी का प्रयोग करना है लेकिन राजभाषा नियम, 1976 पर पूरी तरह से अमल नहीं कर रहे हैं। धारा 3(3) के अंतर्गत 14 दस्तावेजों को किसी भी हालत में द्विभाषी रूप में जारी करना अनिवार्य है लेकिन इस धारा का शतप्रतिशत पालन नहींहो रहा है । यदि हम इन नियमों का अच्छी तरह से पालन करें तो कोई कठिनाई नहीं है |
2. राजभाषा हिंदी की वर्तमान स्थिति से क्या आप संतुष्ट हैं ?
उत्तर : मैं राजभाषा हिन्दी की वर्तमान स्थिति से पूरी
तरह से संतुष्ट नहीं हूँ क्योंकि हमारे देश में बहुत सारे सरकारी विभागों में आज
भी हिन्दी में बिलकुल भी कार्य नहीं होता है| जो
हिन्दी भाषा के भविष्य लिए एक दुखद
और चिंता का विषय है,परन्तु पहले के मुक़ाबले दिनोदिन लोगों में हिन्दी भाषा के
प्रति लोकप्रियता बढ़ रही है ।लोग हिंदी फिल्मे, कवि-सम्मेलन , संगीत आदि का खूब
आनद उठा रहे हैं | यदि हम खुद हिंदी में काम नहीं करेंगे तो दूसरों
को कैसे प्रोत्साहित करेंगे ? मेरा कार्यक्षेत्र तकनीकी के साथ-साथ हिंदी का भी
है और राजभाषा के प्रचार-प्रसार हेतु किये
गए प्रयासों का नजारा आप संस्थान में भली-भांती देख पाएंगे |आये दिन हिदी अनुवाद,
सॉफ्टवेर प्रशिक्षण अदि के कार्यशालाओं के
आयोजन के साथ-साथ कई प्रतियोगिताओं व कार्यक्रमों
का आयोजन हम करते रहे हैं और प्रयास जारी है|
3. हिंदी आज अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्थापित हो चुकी
है लेकिन भारत में आज भी उसे अपनों से सम्मान की आशा निरर्थक सी हो रही है |इस बिषय में आपका क्या कहना है ?
उत्तर : इसमें कोई शक नहीं है कि हिंदी आज अंतराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्थापित हो चुकी है । आज आप फेसबुक पर देखें तो दिन व दिन हिंदी में या अपनी मातृभाषा में प्रयोगकर्ताओं की संख्या बढ़ती जा रही है ।आज कल हिंदी को
लेकर बहुत सी परिचर्चाएँ, गोष्ठिया व कार्यशालाओ का आयोजन किया
जा रहा
है लेकिन अपनी भाषा को लेकर जो उत्साह होना चाहिए उसकी हम भारतीयों
में बहुत
कमी है| जैसा कि मैंने आपको पहले ही बताया है कि हमारे देश में हिंदी में काम करने के लिए लोगों को केवल अपनी मानसिकता बदलने की आवश्यकता है । यूरोपियन हिंदी विद्वान
रेवरेण्ड फादर डा. कामिल बुल्के तुलसी हिंदी से प्रभावित हो सत्र 1935 में स्वदेश (बेल्जियम) त्याग कर जीवन पर्यंत भारतीय नागरिकता लेकर भारत में ही रहे| उन्होने स्पष्ट कहा :"अंग्रेजी यहाँ अतिथि के रूप में
ही रह सकती है , बहुरानी के रूप में नहीं |
संस्कृत माँ , हिंदी गृहणी और
अंग्रेजी नौकरानी है |"
4. हिंदी का अतीत गौरवशाली वर्तमान समृद्ध और भविष्य उज्जवल
रहा है| फिर भी
हिंदी में बहुत कुछ करना शेष है| आपकी दृष्टि में वे ऐसे कौन से क्षेत्र हैं जहाँ हिंदी में काम किये जाने
की जरुरत है?
उत्तर : आपका यह सवाल सही है कि हिंदी में अभी बहुत कुछ
करना शेष है । मेरी नजर में ऐसे कई क्षेत्र हैं जहां हमें हिंदी में काम करने की
अत्यंत आवश्यकता है जैसे सबसे पहले विद्यालयों में, महाविद्यालयों में, विश्वविद्यालयों
में विशेषकर अभियांत्रिकी और विज्ञान के क्षेत्र में और उसके बाद अपने निजी जीवन
में हिंदी में काम करने की बहुत आवश्यकता है। इसके साथ-साथ हिन्दी के प्रति लोगों
में जागरूकता पैदा करके भी हम लोग हिन्दी की गरिमा को बढ़ा सकते हैं ।
5. हिंदी को सबसे ज्यादा किस भाषा से खतरा हैं और हिंदी
अपने को उसके सामने कैसे प्रतिस्थापित कर सकती है ?
उत्तर : हिंदी को ही नहीं हमारी समस्त भारतीय भाषाओं को सबसे ज्यादा अंग्रेजी भाषा से ही खतरा है।वर्तमान
समय में अंग्रेजी सिर्फ हिंदी पर ही हावी नहीं है बल्कि अन्य भारतीय भाषाओं पर भी हावी है। हमें अपनी भारतीय भाषाओं का विकास करना जरूरी है ताकि कोई विदेशी भाषा हमारी भारतीय भाषाओं को हानि न पहुंचा सके। विभिन्न भाषा का ज्ञान रखना बुरी बात नहीं
है परन्तु अपनी राजभाषा का ज्ञान रखना एवं प्रयोग करना नितांत आवश्यक है| यह स्वाभिमान कि
बात है | बड़े बड़े कार्यक्रमों में राजभाषा का प्रतिनिधित्व करते हुए हिंदी का ही
प्रयोग करें |
6. हिंदी भारत की राजभाषा है लेकिन इसे राष्ट्रभाषा का रूप
नहीं दिया जा सका |आप इसे
राष्ट्र भाषा बनाने के पक्ष में हैं या नहीं ?
उत्तर : इसमें तो कोई शक ही नहीं है कि हिंदी हमारे देश
की राजभाषा है, इसे तो 14 सितंबर, 1949 को ही संघ की राजभाषा घोषित
कर दिया गया था और जब से हमारे देश का संविधान लागू हुआ, तब
से हिंदी भी संवैधानिक रूप से राजभाषा के रूप में लागू हो गई। मैं हिन्दी को ही
राष्ट्रभाषा बनाने के पक्ष में हूँ क्योंकि हर किसी को अपनी मातृभाषा प्रिय होती
है और ऐसा करना भी देशहित में होता है ।राजभाषा का प्रयोग करना भी देशभक्ति ही है
|
7. राजभाषा के प्रचार-प्रसार में आपके द्वारा किये गए
प्रयास प्रेरणास्पद हैं | संस्थान में
अब तक किये गए प्रयासों की विस्तृत जानकारी दें |
उत्तर : मैं अपने कर्तव्य को पूरी मेहनत एवं लगन और
ईमानदारी से निभाने के लिए हमेशा तत्पर रहता हूं| तकनीकी क्षेत्र में भी राजभाषा के प्रयोगों को बढ़ावा देने हेतु
प्रयासरत्त हूँ । मेरा हमेशा से यही प्रयास रहा है कि संस्थान के सभी विद्यार्थी –
शिक्षक,अधिकारी हमेशा हिंदी ही प्रयोग में लायें | इसके लिए मैं खुद हिंदी कम-काज
व पत्राचार में हिंदी ही प्रयोग करता हूँ और दूसरों को भी प्रेरित करता हूँ |
सरकारी कार्यालयों से भारत सरकार की भी यही अपेक्षा है कि
कार्यालय चाहे केंद्रीय सरकार के अंतर्गत हो या राज्य सरकार के अंतर्गत, बैंक हो या उपक्रम अथवा निकाय सभी अपना सारा काम
यूनिकोड-हिंदी में करें। राजभाषा विभाग
द्वारा हिंदी में काम करने के लिए बहुत सारे सॉफ्टवेयर विकसित करवाए गए हैं जिनका
उपयोग करें जैसे कि अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद के लिए 'मंत्र-राजभाषा
सॉफ्टवेयर', हिंदी में डिक्टेशन देने के लिए 'श्रुतलेखन-राजभाषा', भाषा शिक्षण के लिए 'लीला हिंदी प्रबोध, प्रवीण एवं प्राज्ञ सॉफ्टवेयर'
'ई-महाशब्दकोश' इन सब सॉफ्टवेयरों का
प्रचार-प्रसार करें और अधिक से अधिक उपयोग करें। हिंदी का प्रयोग कंप्यूटरों पर
भी सभी लोग करने में समर्थ हो इसलिए समय-समय पर कार्यशालाओं का आयोजन भी करता आया
हूँ | जिसमे यूनिकोड सक्रिय कैसे करें, अपने कार्यालय का या निजी काम, पत्राचार,
अनुवाद हिंदी में कैसे करे आदि की जानकारी
दी गयी । इसके साथ-साथ संस्थान की वार्षिक पत्रिका “सम्मुख“ का भी प्रकाशन होता हैं और इस बार हमने संस्थान
की त्रैमाषिक पत्रिका “ ध्वनि “का प्रथम संस्करण
का भी सफल प्रकाशन किया है | यह हिन्दी भाषा को एक नया आयाम देने का प्रयास
है। संस्थान में हिन्दी पखवाड़े और विश्व हिन्दी दिवस पर कई प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है ताकि हिन्दी भाषा के
प्रति लोगों में जागरूकता उतप्न्न हो सके । जिसमे हम विजयी प्रतिभागी को पुरस्कृत
भी करते है|पिछले हिंदी पखवाडा में 1 लाख 26 हज़ार एवं विश्व हिंदी
दिवस 87 हज़ार रुपये की नकद राशि विजेताओं के बीच वितरित
किया | संस्थान में हिन्दी भाषा के प्रति बढ़ती लोकप्रियता इसका ही परिणाम है ।
धन्यवाद !
© चन्द्रशेखर प्रसाद