Saturday, March 8, 2014

चुनावी उद्बोधन

जिसने किया था जम कर शोषण, दिया न भर पेट भोजन |
गोल-गोल किये थे वादे, चिकने-चुपड़े थे जिसके आश्वासन ||
जब सत्ता थी इनके हाथों में, चिपका रहा जो अपने सिंहासन |
वो नेता ही था, जो पांच बर्ष तक लौट के फिर आया नहीं था ||


अपने को, जनता का मालिक-मुक्तार समझता था |

अपने को, जनता का पालनहार समझता था ||
अपने को, ईश्वर का अवतार समझता था |
वो नेता ही थाजो अपने को सरकार समझता था ||



दबी-कुचली जनता बन, जी लिए बहुत तुम |

तुमको तुम्हारी पहचान कराने आया हूँ ||
भूल गए, स्वराज मिली थी वर्षों पहले तुमको |
उपयोग करो स्वाधिकार, याद दिलाने आया हूँ ||

जनता का,जनता द्वारा,जनता के लिए ही है सर्वस्व,जानो तुम |
मैं लोकतंत्र का चारण हूँ, इसकी महिमा तुमको बतलाने आया हूँ ||
सरकार बदलो, व्यवस्था बदलो, अब “सुराज्य” तुम्हें ही लाना है |
न्योछावर किया हो अपना जीवन तुम पर, उसको ही अपनाना है ||
                                            

                                                    © चन्द्रशेखर प्रसाद