Friday, February 7, 2014

इन आखों ने क्या कुछ नहीं देखा है......


जिन आँखों का था मैं सपना, उन नज़रों को बदलते देखा है |
थी जो मेरी महफ़िल की रौनक, उन्हें गैरों के लिए सजते देखा है ||

                           ओ जो देख के हमें, यूँ ही चुप-चाप गुजर जाती है |
                           अपनी आँखों में, उनकी निगाहों को झांकते देखा है || 

खुद से भी ज्यादा जो मुझको प्यारा है, उनको दुश्मन सा जलते देखा है |
मौज-मस्ती व एहसास–ए-मोहब्बत, यादों का कारवां सा बिखरते देखा है ||

          सोने की चिड़िया कहलाने वाले भारत में भी, भूखा-नंगा देखा है |
             सभ्यता संस्कृति में विश्वगुरु भारत को, इंडिया में बदलते देखा है ||

भ्रष्ट नेता-पुलिस-मिडिया छोड़ो, दो बोतल की खातिर जनता को बिकते देखा है |
सीता-राधा-दुर्गा-काली की धरती पर भी, हर रोज नारी की आबरू लुटते देखा है ||

-                                                                                                                                 -    चन्द्रशेखर प्रसाद