Wednesday, February 27, 2013

वे लगाते रहे नमक प्यार से जख्मों पर


जिन्दगी को पकड़ने की कोशिश की तरह–बेतरह
पर मुट्ठी से फिसलती रही वो रेत  की  तरह
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हम तो तड़पते रहे ताउम्र प्यासी मछली-से
पर हाथ न आई ज़िंदगी बहते पानी की तरह
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वे लगाते रहे नमक प्यार से जख्मों पर
और हम सहते रहे उसे आदत की तरह
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सोचा था जीने को चारा तो मिलेगा कुछ
इस आस में चलते रहे हम बैल की तरह
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वे तपते रहे जेठ-के प्रताप-से सिर पर
अर्पित रहे  हम जिन्हें मेघ की तरह
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                                  - चन्द्रशेखर प्रसाद