Monday, November 28, 2011

UMMID-E-INTAZAR (उम्मीद -ए–इंतजार) :




बेखबर  उन  अंधेरों  से , कभी  हम  भी  संग  तेरे ,
 कुछ  ख्वाब   बुना  करते  थे  |
तेरी  बाँहों  को  थाम  बेख़ौफ़  चला  करते  थे ,
तेरे आने  की  आश  में ,

इंतजार की घड़ियों  का  मिनट  साल  लगता  था ,
गुस्से   से  मेरा  चेहरा  लाल   लगता था,और   तेरे आने से,
जैसे  नदियों  की धाराओं  में  रफ़्तार आयी थी   |
दिन  जल्दी- जल्दी  ढल  कर  सुनहली  शाम  लायी  थी |



भवरों  का गुन - गुनना ,फूलों  का मुस्कुराना ,
तितलियों  के  संगीत और ऊपर  से तेरा  इठलाना    हाय !
प्रभामंडल  में  एक चमक  का संचार  लाती  थी ,
तू  हाथ  थाम  मेरे  सीने  पर  सर  रख ,
घंटों  बाते  लड़ाती  थी ,देर  हुई  बहुत ,
अभी  जाना  है जल्दी कह  ,घबरा  सी  जाती   थी |

में तेरे इन  झील   सी निगाहों   में,डूब  जाता  था,
आँखों  को झपकाकर  ,तेरा मुस्कुराना  ,हमें  खूब  भाता   था |
घंटों  बातें  करते , खोकर   उन सतरंगी  दुनियां  में,
हम भी रख सर गोद  तुम्हारे  ,तुम्हें  निहारा  करते थे |

कभी तुझमे  चाँद  तो कभी चाँद  में तुम  नजर  आते  थे ,
प्रियतम   सच  कहना  गुस्ताखी    होगी ,
उस  रुपिन  चांदनी  को मेरे प्रति  उदासी  होगी |
कि,चाँद में अगर  दाग   होती, तेरी उपमा  उससे होती |

जिन्दगी  संगसंग   जीने  के अरमान  थे हमारे ,
हर  पल  जिसे  अपना  माना  वों  नाम  थे  तुम्हारे,
जिसे महसूस  किया  ख्वाबों   में,वो  हसीन एहसास  थे तुम्हारे  |
छोड़  कर हमे  अकेला  इस  जीवन  में,जाने  तुम कहाँ  चले  गए ,

आज  भी तन्हा  दिल   खोया  है,उम्मीद-इंतजार में  ,
तुम एक दिन जरुर लौट आओगी,अपने दीवाने की दीदार  में...!!
                                                 
                                   -  चन्द्रशेखर प्रसाद