बेखबर उन अंधेरों से , कभी हम भी संग तेरे ,
कुछ ख्वाब बुना करते थे |
तेरी बाँहों को थाम बेख़ौफ़ चला करते थे ,
तेरे आने की आश में ,
तेरे आने की आश में ,
इंतजार की घड़ियों का मिनट साल लगता था ,
गुस्से से मेरा चेहरा लाल लगता था,और तेरे आने से,
जैसे नदियों की धाराओं में रफ़्तार आयी थी |
भवरों का गुन - गुनना ,फूलों का मुस्कुराना ,
तितलियों के संगीत और ऊपर से तेरा इठलाना हाय !
प्रभामंडल में एक चमक का संचार लाती थी ,
तू हाथ थाम मेरे सीने पर सर रख ,
घंटों बाते लड़ाती थी ,देर हुई बहुत ,
अभी जाना है जल्दी कह ,घबरा सी जाती थी |
में तेरे इन झील सी निगाहों में,डूब जाता था,
आँखों को झपकाकर ,तेरा मुस्कुराना ,हमें खूब भाता था |
घंटों बातें करते , खोकर उन सतरंगी दुनियां में,
हम भी रख सर गोद तुम्हारे ,तुम्हें निहारा करते थे |
कभी तुझमे चाँद तो कभी चाँद में तुम नजर आते थे ,
प्रियतम सच कहना गुस्ताखी न होगी ,
उस रुपिन चांदनी को मेरे प्रति उदासी न होगी |
कि,चाँद में अगर दाग न होती, तेरी उपमा उससे होती |
जिन्दगी संग –संग जीने के अरमान थे हमारे ,
हर पल जिसे अपना माना वों नाम थे तुम्हारे,
जिसे महसूस किया ख्वाबों में,वो हसीन एहसास थे तुम्हारे |
छोड़ कर हमे अकेला इस जीवन में,जाने तुम कहाँ चले गए ,
आज भी तन्हा दिल खोया है,उम्मीद-ए –इंतजार में ,
तुम एक दिन जरुर लौट आओगी,अपने दीवाने की दीदार में...!!
- चन्द्रशेखर प्रसाद
- चन्द्रशेखर प्रसाद