हाय, सुनामी का क्या कहना ,
जबाब नहीं है उसका |
उसने दिया है दर्द दिल का ,
अब किसी से क्या कहना ||
बलि ले ली उसने उन वल वालों को ,
घर से बेघर कर डाला उन घर वालों को |
मार ही डाला उसने हम सबके रिश्तेदारों को ,
जुदा कर दिया उसने अपनों से प्यारों को ||
कितना है ये हाय ! कमीना ,
जिसने लाखों का सुख छिना |
फुटा प्रभात जब हुआ बिहान ,
बह चले उर में बसे मानव के प्राण ||
माँ की ममता लुट गयी ,
पिता का स्नेह बिखर गया |
हम सुब बटोर न पायें उसको ,
ये सुनामी ले भागा सबको ||
अब हुए बस में हम वेगानों के ,
अपने अपनों से बिछुरा के |
छोर गए वे हमको ,
दर–दर की ठोकरे खाने को ||
अब ये दुनियां दानें - दाने को तरसाती है,
माँ की ममता याद दिलाती है |
अपनों की याद बड़ी सताती है ,
ये दिल फिर अपनों से मिलाने को करती है ||
चन्द्रशेखर प्रसाद