कसमकस जिन्दगी की ,स्मृति पटल पर करती नर्तन |
क्षत–विक्षत मानवता दर्शन ,संस्कृति हीन अंग प्रदर्शन ||
त्रस्त नयन मुख कल्पित काया ,है सुख - दुःख , धुप -छाया |
सुन -सुन बम गोले की गर्जना ,मौन भी खोलता मुखड़ा ||
क्षुब्द अंक डोलता ,शोषित अंग कराहता |
नेता मंत्री सराहता ,सब दर्शक दंग रहा ||
डर कर आप में मग्न हुआ,कहीं भूख की खातिर नग्न हुआ |
कितने अपने-अपनो से दूर हुए,कुछ हैं फैशन में चूर हुए ||
कोई अपनो से मिलाने को तरपे,कितनों ने अपनो को भुला दिया |
आदमी आदमी को पहचान न सका,भीड़ में खो गई आदमियता ||
उदिघ्न मन बेक़रार धड़कन ,भींगे नैनो से देख रहा |
भींगे नैनो से बस देख रहा ………………………..||
|
No comments:
Post a Comment