Wednesday, August 24, 2011

HINDI KAL AUR AAJ (हिंदी कल और आज):

आज कल हिंदी को लेकर बहुत सी परिचर्चाएँ, गोष्ठिया कार्यशालाओ का आयोजन किया जा रहा है| अपनी भाषा को लेकर जो उत्साह होना चाहिए उसकी हम भारतीयों में बहुत कमी है|हिंदी को संघर्ष यात्रा के माध्यम से स्वाधीनता संग्राम में प्रातःकालिन प्रभात फेरियों के स्वर :

" उठो सोने वालो सवेरा हुआ है , वतन के फकीरों का फेरा हुआ है |" जन -जन को स्वतंत्रता के गीतों से जगाने का कार्य किया गया जो कभी जबरन थोपी जाने वाली भाषा नहीं रही| स्वतंत्रता संग्राम के दौरान नेताओं तथा समाज सुधारको की बड़ी श्रंखला ने देश के हित के लिए हिंदी को संपर्क भाषा के रूप में प्राथमिकता दी थी|
स्वतंत्रता कि लड़ाई को जन-जन तक पहुँचाने  के लिए एक केंद्रीय भाषा की आवश्यकता  अनुभव कि गयी थी और स्वदेशी के ग्यारह सूत्रों में से हिंदी एक सूत्र थी |
वर्तमान समय में देश कि द्वितिय भाषा के रूप में हिंदी बोलने-समझने वालो कि मान्यता प्राप्त कर चुकी है| देश के बाहर करोड़ों भारतीए प्रवासी के बीच "प्रवासी हिंदी साहित्य" का सर्जन हो चूका है|
-> अंग्रेजी-हिंदी विद्वान डा. ग्रिययर्न की मान्यता थी " हिंदी ही एक भाषा है जो भारत में स्वतंत्र बोली और समझी जाती है |"
-> जापान के हिंदी विद्वान प्रो. क्युमादोई के शब्दों में भारत के लोगो का ध्यान आकृष्ट  करने वाली महान संस्कृति हैं परन्तु भारत का जो सार हैं उन्हें अन्य भाषा में नहीं समझा जा सकता | यदि एक बार जाए तो लोग हिंदी के लिए उत्सुक हो जायेंगे|
-> यूरोपियन हिंदी विद्वान एवं कवि प्रो. ओडोलेन स्मेकेल ने हिंदी को अमृत समान कहा-
 " हिंदी ज्ञान मेरे लिए अमृत पान है, जितनी बार उसे पीता हूँ उतनी बार लगता है, पुन: जीता हूँ|  
 हिंदी का पूर्णरूपेण ज्ञान हैं,सोम रस पान के लिए, जितनी बार उसे पिया उतने जीवन जीया |"

-> माँरिशस के प्रमुख साहित्यकार श्री सोमदत बखोरी द्वारा रचित काव्य कृति "मुझे कुछ कहना है" हिंदी यात्रा का यथार्थ वर्णन करती है|
विदेशो में अब तो हिंदी प्रवचन, रामकथा, भागवत कथाए बड़ी संख्या में सुनने के साथ प्रसंग आने पर तालियों कि करतल ध्वनि भी सुनाई देती है| संस्कार, आस्था चैनल्स मुख्यत: 168  देशो में अहम भूमिका निर्वहन कर रहे है |
आजकल हिंदी में वेबसाइट और ब्लॉग प्रयोग करने वालो कि तादात कई गुना बढ़ गयी है|
संसार के विभिन्न देशो में  70 से अधिक विश्वविद्यालयो में हिंदी शिक्षण चल रहा है|
चीन में हिंदी शिक्षण कि परंपरा अपनी 50वी वर्षगाँठ मना चुकी है और वहाँ हिंदी प्रसारण कि भी व्यवस्था है| जी.टीवी पर प्रात:काल 'बाइबल' के उपदेश हिंदी में प्रसारित  किये जाते है|
आज हिंदी के प्रभावशाली होने पर अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बूश ने 21 वीं सदी की विकासशील भाषा कहकर उसे अपने देश कि उन्नति  हेतु 10करोड डालर की राशि भी दी|श्री ओबामा ने विगत दीपावली की शुभकामनाऍ हमारे प्रधानमंत्री को हिंदी में दी|सेनानी एवं हिंदी साहित्य की मन्दाकिनी- महादेवी वर्मा कहती है :" सचमुच उस समय मेरी आँखे भर जाती है जब मेरे पास लोगो के पत्र अंग्रेजी में आते हैं |"
भारत के बॉलीवुड फ़िल्म उद्योग संसार में दूसरा स्थान बना कर हिंदी का क्षेत्र व्यापक कर दिया,परन्तु नयी पीढ़ी को दिग्भ्रमित कर दिया हैजहाँ एक ओर हिंदी को बढावा दिया है वहीँ दूसरी ओ देश की मर्यादा और संस्कृति को अप्रत्यक्ष रूप से विकृत किया है|
अंग्रेजी के पीछे मेकाले की मनसा (लार्ड मेकाले की टिपण्णी- 1935)
फरवरी ,१८३५ को लार्ड मेकाले ब्रिटिश सांसद को संबोधित करते कहा था " मैंने भारत की ओर-छोड़ की यात्रा की है, पर मैंने यहाँ एक भी आदमी नहीं देखा जो भीख मांगता हो या चोर हो| मैंने इस मुल्क में अपार सम्पदा देखी हैं| उच्च उद्धत और नैतिक मूल्यों वाले भारतीय को कभी कोई जीत नहीं सकता, यह मै मानता हूँ| जब  तक हम इस देश की रीढ़ ही नहीं तोड़ दे  और भारत की यह रीढ है उसकी आध्यत्मिकता और संस्कृतिक विरासत | इसलिए मैं यह प्रस्ताव करता हूँ कि भारत कि पुरानी शिक्षा-व्यवस्था को हम बदल दे | उसकी संस्कृति को बदले ताकि भारतीय यह सोचे कि जो विदेशी है बेहतर है ताकि वे सोचने लगे कि अंग्रेजी भारतीय भाषाओं से महान है | इससे वे अपना आत्म-सम्मान खो बैठेंगे | अपनी देशज भारतीय संस्कृति भूलने लगेंगे और तब वे वह होंगे जो हम चाहते है | सचमुच का आक्रांत और पराजित राष्ट्र|"   
आज जब भी  मैं  वर्तमान की ओर अपनी  नजनें भेजता हूँ हिंदी की दुर्दशा देख मन-चित आक्रांत हो उठता है|भारत के राजनेता सत्ता प्राप्ति बाद भारतीय संस्कृति , भाषा एवं वांग्मय  से इतना दूर होते जा रहे है कि उन्हें पता भी नहीं होता कि ये भारतीयों के हित में काम कर रहे है अथवा नहीं | हमारे राजनेता जब विदेश जाते है तो वह राजकीय संबोधन भारतीय भाषा में नहीं करते |किसी भी  राष्ट्र की अस्मिता ,स्वतंत्र अस्तित्व और राष्ट्रीय स्वाभिमान की पहचान यही होती है कि ऐसे समय में वे अपनी भाषा का ही प्रयोग करें |
आजकल सभी सरकारी काम-काज भी अंग्रेजी माध्यम से ही किया जाता है | लगता है मेकाले का भूत सर चढकर बोल रहा है| हिंदी भाषी राज्यों में भी हिंदी की दुर्दशा शासक वर्गों द्वारा ही की जा रही है| बिहार के एकमात्र हिंदी भवन का दुरूपयोग  राज्यसरकार द्वारा ही हो रहा है | जहाँ हिन्दी संगोष्ठी , कविसम्मेलन ,हिंदी की योजनाएँ कार्यान्वय करने के बजाय वहाँ 'मैनेजमेंट' की पढ़ाई हो रही है |यूरोपियन हिंदी विद्वान तुलसी हिंदी से प्रभावित हो सत्र 1935 में स्वदेश (बेल्जियम) त्याग कर जीवन पर्यंत भारतीय नागरिकता लेकर भारत में ही रहे | जिनका नाम रेवरेण्ड फादर डा. कामिल  बुल्के है ,उन्होने  स्पष्ट कहा :"अंग्रेजी यहाँ अतिथि के रूप में  ही रह सकती है |बहुरानी के रूप में नहीं |संस्कृत माँ , हिंदी गृहणी और अंग्रेजी नौकरानी है |"
भारतेंदु हरिश्चंद ने स्वदेश प्रेम, स्वभाषा और स्वसंस्कृति की गरिमा पर जोर देते हुए कहा है:-
 
निज भाषा उन्नति अहै; सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।
अँग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीण।
पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन।।


प्रस्तुति :
चन्द्रशेखर प्रसाद

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