Thursday, August 25, 2011

MANAVTA KI PAHACHAN (मानवता की पहचान):




चूस रहे हैं धरती का रस जो ,है गुलाब मतवाला |
भ्रमर -भ्रमर बैठे पराग पर ,कांटे लगते माला ||

अमराई अंगराई भारती ,जीवन है मधुशाला |
किरणकिरण की धुन जागी है,गुलशन लागे आला ||

सौरभ वन उपबन मैं विहँसे ,चुटकी दै - दै बाला |
मानव तेरे जीवन में भी,मृगतृष्णा है हाला  ||

काटों का क्या मोल बाएँ ,मंजिल पा ले दामन |
थिरकथिरक वह दूर जा रहा ,क्रंदन वन का नंदन ||

सम्मोहित मन चंचलता में ,निर्मित करता माया |
सुन्दरतम जगती गुलाब का ,सुरभित , सुस्मित काया ||

कौतुक नियति पसारे जग में,सच कह दूँ में यारा |
फूल -फूल हैं , काटें -कांटे ,जग जीते में हरा ||

मानवता पहचानो मानव ,बांटे सौरभ जस गुलाब |
प्रेम जगत सार तत्व है,दर्दे दिल की है पुकार ||
           
       
                                                          चन्द्रशेखर प्रसाद

1 comment:

Anonymous said...

NICE POEM !!!